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Premanand Ji Maharaj Biography (प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय)

प्रेमानंद जी महाराज, वृंदावन में राधारानी के भजन-कीर्तन के प्रमुख प्रवक्ता हैं। उन्होंने भजन मार्ग और कथा के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति का ज्ञान प्रस्तुत किया है। चलिए, हम प्रेमानंद जी महाराज के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को जानते हैं।

Premanand Ji Maharaj

India A News Premanand Ji Maharaj: राधारानी के श्रेष्ठ भक्त और वृंदावन के प्रमुख संत, प्रेमानंद जी महाराज, का परिचय कौन नहीं लेना चाहेगा? वे आजकल के प्रसिद्ध संत हैं, और इसी कारण उनके भजन और सत्संग में लोग दूर-दूर से आकर भगवद भक्ति में रूचाएँ लेते हैं। प्रेमानंद जी महाराज की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है।

कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं Premanand Ji Maharaj को अपना दर्शन दिया था, जिसके बाद उन्होंने संसारिक बंधनों को त्यागकर वृंदावन की ओर प्रस्थान किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रेमानंद जी महाराज ने कैसे साधारिता से भरा जीवन त्यागकर भक्ति मार्ग का अनुसरण किया और कैसे वे महाराज बन गए? चलिए, हम प्रेमानंद जी महाराज के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को जानते हैं।

Premanand Ji Maharaj: जिनका असली नाम क्या है? कैसे उन्होंने संन्यासी बनने का निर्णय लिया? आइए जानें वृंदावन के प्रेमानंद महाराज की यह अद्भुत कहानी।

प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका बचपनीय नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। इनके पिताजी का नाम श्री शंभू पांडे और माताजी का नाम श्रीमती रामा देवी था। प्रेमानंद जी के दादाजी ने संन्यास लेने का निर्णय किया था और उनके पिताजी भी भगवान की भक्ति में रत थे, जबकि उनके बड़े भाई भी नित्य पूजन में लगे रहते थे।

प्रेमानंद जी के परिवार में भक्तिभाव भरा माहौल था और इसका असर उनके जीवन पर पड़ा। उन्होंने बताया कि जब वह 5वीं कक्षा में थे, तो उन्होंने गीता का पाठ शुरू कर दिया, जिससे उनकी आध्यात्मिक रुचि बढ़ने लगी। इसके साथ ही, उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की भी प्राप्ति होने लगी। जब उन्होंने 13 वर्ष की आयु में ब्रह्मचारी बनने का निर्णय लिया, तब उन्होंने घर को त्यागकर संन्यासी बन लिए। संन्यासी जीवन की शुरुआत में, प्रेमानंद जी महाराज का नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया।

संन्यासी जीवन में बिताए गए कई दिनों तक, प्रेमानंद जी महाराज ने अपने आत्मा को उच्चतम आध्यात्मिक अनुभव की ओर बढ़ने का संकल्प किया। उन्होंने संन्यासी बनने के बाद अपने परिवार को त्यागकर वाराणसी में अपने आध्यात्मिक साधना के लिए निवास स्थल चुना।

Premanand Ji Maharaj

Premanand ji Maharaj Biography Overview

बचपन का नामअनिरुद्ध कुमार पांडे
जन्म स्थलअखरी गांव, सरसोल ब्लॉक, कानपुर, उत्तर प्रदेश
माता-पिता का नाममाता रमा देवी और पिता श्री शंभू पाण्‍डेय
घर त्यागा13 साल की उम्र में
महाराज जी के गुरुश्री गौरंगी शरण जी महाराज
गुरु की सेवा10 वर्षो तक
महाराज की उम्र (age)60 वर्ष लगभग
WebsitePremanand Ji Maharaj Official Website

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के परिवार के बारे में: स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के पिता श्री शंभु पाण्डेय एक भक्तिपूर्ण व्यक्ति थे और उनकी माता का नाम रमा देवी था, जो कि बहुत पवित्र आत्मा थीं। उनके दादा जी भी संन्यासी थे और पूरे परिवार का वातावरण सात्विक और शुद्ध था।

प्रेमानंद जी महाराज के बड़े भाई ने श्रीमद्भागवतम् का आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था, और इस ज्ञान को पूरे परिवार के सदस्यों ने साथ में सुना। उनके माता-पिता हमेशा से साधु-संतों की सेवा में लगे रहते थे और इस प्रकार उनका घर धार्मिक और आध्यात्मिक माहौल से भरा हुआ था।


महाराज जी का ब्रह्मचारी जीवन: अपने घर छोड़ने के बाद, महाराज जी को नैष्ठिक ब्रह्मचर्य में दीक्षित किया गया था, और उनका नाम बदलकर आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी रखा गया। इसके बाद, महाराज जी ने संन्यास लेने का निर्णय किया, और महा वाक्य को स्वीकार करने पर उनका नाम स्वामी आनंदाश्रम रखा गया।

संन्यासी जीवन में कई दिनों तक रहे भूखे: प्रेमानंद जी महाराज ने प्रतिदिन गंगा में तीन बार स्नान करने का अनुसरण किया और तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा की पूजा की। वे दिनभर में केवल एक बार ही भोजन करते थे, और यह भी भिक्षा मांगने के स्थान पर। प्रेमानंद जी महाराज भोजन को प्राप्त करने की इच्छा से 10-15 मिनटों तक वहां बैठते रहते थे। अगर उन्हें इस समय में भोजन नहीं मिलता था, तो वे निराश होकर सिर्फ गंगा के जल से तृप्त रहते थे। संन्यासी जीवन की इस तपस्या में, प्रेमानंद जी महाराज ने कई दिनों तक भूखे रहकर अपने आत्मा को समर्पित किया।

कठिन तपस्या: भगवान की प्राप्ति के लिए, स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने एक कठिन तपस्या का संकल्प किया और उन्होंने ठान लिया कि तब से उनका सम्पूर्ण जीवन भगवान की भक्ति में समर्पित होगा। वे अब अपना अधिकांश समय एकांत में बिताना पसंद करते हैं।

भिक्षा मांगने के लिए वे भोजन प्राप्त करते और कई दिनों तक उपवास करते हैं, हमेशा भगवान की लीला में मग्न रहते हैं। प्रेमानंद जी ने शारीरिक चेतना को ऊपर उठा कर मोह-माया को छोड़ कर, पूर्ण त्याग का जीवन व्यतीत किया। उन्होंने आकाशवृत्ति को स्वीकार किया है, जिससे मतलब है कि उन्होंने व्यक्तिगत प्रयास के बिना केवल वही स्वीकार करना जो भगवान ने दिया है, और किसी चीज की आशा नहीं करनी है।

सन्यासी के रूप में, उनका अधिकांश समय गंगा नदी के किनारे बितता है, क्योंकि महाराज ने कभी भी आश्रम के पदानुक्रमित जीवन को स्वीकार नहीं किया है, और उन्होंने सब कुछ त्याग दिया है। उनकी दिनचर्या कभी नहीं बदलती है, फिर चाहे कितनी भी ठंड क्यों न हो, वे हमेशा गंगा नदी में तीन बार स्नान करते हैं, उपवास लेने के लिए वे कई दिनों तक भोजन को त्याग देते हैं।

ठंडा मौसम होने के कारण उनका शरीर कांप रहा है क्योंकि वे भगवान के ध्यान में लगे हुए हैं, इसलिए उन्हें कुछ अहसास नहीं हुआ है। सन्यास और आस्था के कुछ वर्षों बाद उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है।

प्रेमानंद जी के वृंदावन पहुंचने की चमत्कारी कहानी:

प्रेमानंद महाराज जी के संन्यासी बनने के बाद एक अद्भुत घटना वृंदावन में हुई थी। एक दिन, एक अपरिचित संत प्रेमानंद जी महाराज से मिलने आए और उन्होंने बताया कि श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्रीराम शर्मा द्वारा एक आयोजन किया गया है, जिसमें दिनभर श्री चैतन्य लीला और रात्रि में रासलीला का आयोजन हो रहा है, और आपको आमंत्रित किया जा रहा है।

पहले तो महाराज जी ने अपरिचित संत को आने से मना कर दिया, लेकिन संत ने उनसे आयोजन में शामिल होने के लिए काफी आग्रह किया, जिसके बाद महाराज जी ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया। प्रेमानंद जी महाराज ने चैतन्य लीला और रासलीला का आयोजन देखने का बहुत आनंद लिया। यह आयोजन लगभग एक महीने तक चलता रहा, और इसके बाद समाप्त हो गया।

चैतन्य लीला और रासलीला का आयोजन समाप्त होने के बाद प्रेमानंद जी महाराज को आयोजन देखने की व्याकुलता होने लगी कि, अब उन्हें रासलीला कैसे देखने का सुन्नाहर होगा। इसके बाद महाराज जी उसी संत के पास गए जो उन्हें आमंत्रित करने आए थे। उनसे मिलकर महाराज जी ने कहा, “मुझे भी अपने साथ ले चलें, जिससे कि मैं रासलीला को देख सकूं। इसके बदले मैं आपकी सेवा करूंगा।”

संत ने कहा, “आप वृंदावन आ जाएं, वहां आपको प्रतिदिन रासलीला देखने का अवसर मिलेगा।” संत की यह बात सुनकर, महाराजी को वृंदावन आने की ललक लगी और तभी उन्हें वृंदावन आने की प्रेरणा मिली। इसके बाद महाराज जी वृंदावन में राधारानी और श्रीकृष्ण के चरणों में आ गए और भगवद् प्राप्ति में लग गए। इसके बाद महाराज जी भक्ति मार्ग में आ गए, वृंदावन आकर उन्होंने राधा वल्लभ सम्प्रदाय से भी जुड़ा।

swami premanand ji का स्वास्थ्य

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन में आत्मनिवास कर रहे हैं और उनका स्वास्थ्य अच्छा है। विदेश और भारत से लोग उनके दर्शन और ज्ञान के लिए उनके पास आते हैं और उन्हें बहुत सम्मान मिलता है। प्रेमानंद जी का समर्थन करने वाले भक्त उनके पास आकर उनकी सेवा करते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान निकालने में मदद करते हैं।

महाराज जी को कई सालों से गुर्दे की समस्या है, लेकिन वे अपने आध्यात्मिक गतिविधियों और सेवा में जुटे हुए हैं। उनका मानना है कि सब कुछ भगवान के हाथ में है और वह अपने जीवन को भक्ति और सेवा में समर्पित कर रहे हैं।

आप प्रेमानंद जी महाराज से मिलने के लिए उनके आश्रम का पता इस प्रकार है:

श्री हित राधा केली कुंज वृन्दावन परिक्रमा मार्ग, वराह घाट, भक्ति वेदांत धर्मशाला के सामने, वृन्दावन-281121 उत्तर प्रदेश

यहां जाकर आप महाराज जी से मिल सकते हैं और मिलने का समय रात के 2 बजे से शुरू होता है। आप इस पते पर जाकर व्यक्तिगत दर्शन के लिए संपर्क कर सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि उनका नंबर सार्वजनिक नहीं है, लेकिन उनके आश्रम में आकर मिल सकते हैं।

इसके बावजूद, यदि आप उनसे मिलने की सटीक प्रक्रिया जानना चाहते हैं, तो उनकी ऑफिसियल वेबसाइट या उनके आश्रम के संपर्क से जानकारी प्राप्त करें।

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Disclaimer: यहां प्रदान की गई जानकारी केवल मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Indiaanews.com यहां दी गई किसी भी जानकारी या मान्यता की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

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प्रेमानंद जी महाराज – प्रश्नों का संग्रह (FAQ)

  1. प्रेमानंद जी महाराज कौन हैं?
    • प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन में निवास करने वाले आध्यात्मिक गुरु और संत हैं जो भक्ति, ध्यान, और सेवा के माध्यम से भगवान की प्रेम-भक्ति का संदेश बोधाया करते हैं।
  2. महाराज जी से मिलने का क्या प्रक्रिया है?
    • महाराज जी से मिलने के लिए आप उनके आश्रम, श्री हित राधा केली कुंज, वृन्दावन में जा सकते हैं। मिलने का समय रात के 2 बजे से शुरू होता है।
  3. प्रेमानंद जी का शिक्षा में क्या संदेश है?
    • महाराज जी ध्यान, भक्ति, और सेवा के माध्यम से आत्मा के साथ भगवान के संबंध को महत्त्वपूर्ण मानते हैं और इसे प्राप्त करने के लिए अपने शिष्यों को प्रेरित करते हैं।
  4. प्रेमानंद जी महाराज के आश्रम का पता क्या है?
    • प्रेमानंद जी के आश्रम का पता है: श्री हित राधा केली कुंज, वृन्दावन परिक्रमा मार्ग, वराह घाट, भक्ति वेदांत धर्मशाला के सामने, वृन्दावन-281121, उत्तर प्रदेश।
  5. महाराज जी के संदेश कैसे प्राप्त किए जा सकते हैं?
    • आप महाराज जी के संदेशों को उनके सत्संगों, उपदेशों, और आध्यात्मिक गतिविधियों के माध्यम से सुन सकते हैं जो उनके आश्रम में आयोजित होते हैं।
  6. क्या महाराज जी के उपदेशों का ऑनलाइन स्रोत है?
    • हाँ, महाराज जी के उपदेशों को आप उनकी आधिकारिक वेबसाइट और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर सुन सकते हैं।
  7. क्या महाराज जी के शिष्य बनने का कोई विशेष प्रक्रिया है?
    • जी हां, महाराज जी के शिष्य बनने के लिए आपको उनके उपदेशों का पालन करना, आश्रम में सेवा करना, और आत्मनिरीक्षण का पालन करना होता है। शिष्य बनने की पूर्ण प्रक्रिया के लिए आपको उनके आश्रम से संपर्क स्थापित करना पड़ता है।
  8. क्या महाराज जी के साथ व्यक्तिगत संपर्क के लिए अनुमति है?
    • हाँ, महाराज जी के साथ व्यक्तिगत संपर्क के लिए उनके आश्रम में मिलने का समय निर्धारित किया गया है और आप उनसे मिल सकते हैं। उनका संपर्क सामान्यत: सत्संग और आध्यात्मिक गतिविधियों के दौरान संभावित है।

कृपया ध्यान दें: यह सभी जानकारी सामान्य आधार पर है और आपको सटीक जानकारी प्राप्त करने के लिए महाराज जी के आश्रम से संपर्क स्थापित करना चाहिए।

Pardeep Kumar
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