Hanuman Chalisa हनुमान चालीसा
Hanuman Chalisa, हनुमान चालीसा: भक्ति और शक्ति का प्रतीक: Hanuman Chalisa एक अत्यंत प्रसिद्ध और पवित्र भजन है जो हिंदू धर्म में हनुमानजी को समर्पित किया गया है। यह भजन तुलसीदास जी द्वारा रचा गया था और यह श्रेणी के लोगों के बीच बहुत प्रिय है। इसे सुनने से माना जाता है कि व्यक्ति के मन में शांति और उत्कृष्टता की भावना उत्पन्न होती है। हनुमान चालीसा के शुरुआती शब्द “श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।” से ही इसका विशेष महत्त्व और पावनता प्रत्यक्ष हो जाता है। यह श्लोक गुरु की महिमा को गुणात्मक रूप से बताता है और उसे अपने जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान देने की शिक्षा देता है।
इस चालीसा में हनुमानजी के विभिन्न गुणों, शक्तियों, और महिमा का वर्णन किया गया है। उनकी अतुलित बल, धैर्य, और वीरता के अलावा, उनकी भक्ति और समर्पण का प्रतीक भी यहां दिखाया गया है। चालीसा में व्यक्त होने वाली शक्ति और उत्कृष्टता की भावना भक्तों को सतत प्रेरित करती है और उन्हें समस्त कठिनाइयों से निपटने की सामर्थ्य प्रदान करती है।
Hanuman Chalisa के पाठ से हमें यह सीख मिलती है कि भक्ति और शक्ति का सही संयोग ही व्यक्ति को असीम सफलता और समृद्धि की ओर ले जाता है। हनुमानजी की आराधना से व्यक्ति में साहस, संयम, और ध्यान की भावना उत्पन्न होती है जो उसे जीवन में हर कठिनाई को पार करने की शक्ति प्रदान करती है।
इस प्रकार, हनुमान चालीसा एक प्रेरणादायक और महत्त्वपूर्ण भजन है जो हमें आध्यात्मिक उन्नति और आत्मविश्वास में वृद्धि करने में सहायक होता है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से हमारा मन शांत और सत्य की प्राप्ति की दिशा में स्थिर होता है। इस चालीसा का पाठ करते समय भक्ति और आध्यात्मिक संवाद के माध्यम से हम अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं और उच्च आदर्शों की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
दोहा
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर.. जय कपीस तिहुं लोक उजागर ,रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै संकर सुवन केसरीनंदन।तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै ॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥
दोहा :
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